Wednesday, July 29, 2015

Hamro Dhan Radha Rani

एक बार कन्हैया ब्रज में किसी के घर जाते है और उस गोपी से कहते है," क्या मक्खन ले लूँ .
गोपी कहती है - देख लाला ! यदि तुम्हें मक्खन खाना हो, तो मेरा थोड़ा सा काम करना पड़ेगा.
यह सुनकर कन्हैया कहता है - गोपी ! बता तेरा क्या काम करना है?
गोपी कहती हैं- देखो! 'मेरा वह पीढ़ा (पाटला) ले आओ"
सच जहाँ प्रेम होता है वहाँ संकोच नहीं होता. यह तो शुद्ध प्रेम-लीला है.कन्हैया जाते है और पीढ़ा उठाते तो है,किन्तु भारी होने के कारण उसे उठा नहीं पाता .कन्हैया अत्यंत कोमल शरीर का है.फिर भी उसे मक्खन का लालच है वह पीढ़ा उठाते है, किन्तु वह पीढा बड़ा भारी था , भारी होने के कारण रास्ते में उसके हाथ से छुट जाता है और उसका पीताम्बर भी खुल जाता है.
ज्ञानी पुरुष को ब्रह्म-साक्षात्कार होता है.फिर भी ज्ञानी पुरुष जब तक पंचभौतिक शारीर में होता है, तब तक माया का थोड़ा पर्दा होता ही है.उसे प्रारब्ध का कुछ भोग भोगना ही पड़ता है. माया यदि थोड़ी भी बाकि होती है, तो भी प्रारब्ध भोगना ही पड़ता है. गोपियाँ निरावरण परमात्मा के दर्शन करती हैं. जहाँ अतिशय प्रेम होता है वहाँ पर्दा हट जाता है.
पीढ़ा गिरते ही कन्हैया रोने लगते है. गोपी दोड़कर आती है और कहती है,- अरे! लाला तुझे क्या हो गया? क्या कुछ चोट लग गई? कन्हैया कहते है," चोट तो नहीं लगी, किन्तु मेरा पीताम्बर खुल गया है .गोपी लाला को पीताम्बर पहनाती है.वास्तव में जहाँ ऐश्वर्य होता है, वहाँ पर्दा होता है. प्रेम में पर्दा नहीं होता.सच है प्रेम का सम्बन्ध ही सबसे ऊँचा है.

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